तुम...इतने समाए हो मुझ में कि ना जाने, कहाँ तक मैं और कहाँ तक तुम...!
मेरी हर सोच पर, पहरा तुम्हारी आत्मीय बाँहों का..
तुम जो, लग जाते हो गले...
तो मन हो जाता है मगन..
और लग जाती है अगनतुम छाए हो, मुझ पर इस कदर कि मैं....
ढूंढता हूँ खुद को तुम मैं...
सिर्फ तुम्हारा 'sujeet'
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